आज की तरक़्क़ी याफ़ता दुनिया में जिस क़दर आसाइश व आराम के वसायल मुहैय्या हैं उसी क़दर सुकून व इतमीनान का फ़ोक़दान है अगर एक तरफ़ सरमाया, औलाद, इल्म, हुनर वग़ैरह में इज़ाफ़ा होता है तो दूसरी जानिब उन्ही तमाम चीज़ों के ज़रिये बे चैनी व इज़तेराब में भी इज़ाफ़ा होता है सुकून व चैन, राहत व इतमीनान ऐसे अल्फ़ाज़ हैं जिन्हे सुनने के लिये समाअत तिशना रहती है। हर शख़्स अपनी मुसीबतों, परेशानियों और बेचैनियों की दास्तान इज़मेहलाल आमेज़ लहजे में सुनाता नज़र आता है। किसी को माली परेशानियों का शिकवा है तो कोई मालदारी से परेशान, कोई औलाद न होने की वजह से गिला मंद है तो कोई औलाद की ना फ़रमानी से तंग, किसी को भूख का ग़म है तो किसी को भूख न लगने का परेशानी, किसी के लिये नींद मुसीबत को किसी को नींद से अज़ीयत, ग़रज़ कि दुनिया में हर फ़र्द किसी न किसी परेशानी में गिरफ़तार ज़रूर है। कोई ऐसा नही है जिस की ज़िन्दगी हर ऐतेबार से पुर सुकून और मुतमईन हो, आख़िर यहा परेशानियां कहां से जन्म लेती हैं? उन का सर चश्मा कहां है? क्या किसी निज़ामे हयात में पूरी ज़िन्दगी को सुकून व चैन से गुज़ारने के उसूल बताये गये हैं?
उन सब सवालों का जवाब हमें क़ुरआन और अहादीस की रौशनी में मिल सकता है फ़क़त हौसले के साथ मुतालआ की ज़रूरत है।
कुफ़्र व बे ईमानी, ख़ुदा फ़रामोशी, ख़ुद फ़रामोशी, हिर्स व तमअ, माल व औलाद की बे हद चाहत, नमाज़ की तरफ़ तवज्जो न देना, लंबी लंबी आरज़ू, ख़ौफ़े का न होना, दुनिया परस्ती, गुनाह, कुफ़राने नेमत, मौत का डर, हादिसात की बुज़ुर्ग नुमाई, जल्द बाज़ी, ज़ाहिर बीनी, शराबख़ोरी, जुवाबाज़ी, ज़ेना कारी, शिर्क और इमामे वक़्त की पैरवी न करना, यह तमाम चीज़े क़ुरआन व हदीस में बे चैनियों के असबाब के उनवान से बयान की गई हैं। उन सब में अहम तरीन शय, ख़ुदा को भूल जाना है कि तमाम असबाब उसी एक